🏛️ मध्यस्थता
मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, गोपनीय और अनौपचारिक प्रक्रिया है, जिसमें एक तटस्थ तीसरा पक्ष (मध्यस्थ) विवाद में शामिल पक्षों को संवाद करने और आपसी सहमति से समाधान तक पहुँचने में मदद करता है। न्यायाधीश या मध्यस्थ की तरह, मध्यस्थ निर्णय थोपता नहीं है, बल्कि दोनों पक्षों को अपनी सहमति से समाधान तक पहुँचाने के लिए चर्चा को सुगम बनाता है।
भारत में, मध्यस्थता को सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के अंतर्गत और न्यायालय-सम्बद्ध मध्यस्थता केंद्रों, सामुदायिक मध्यस्थता और निजी मध्यस्थता सेवाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है। मध्यस्थता अधिनियम, 2023 (हाल ही में पारित) का उद्देश्य मध्यस्थता को प्राथमिक विवाद समाधान पद्धति के रूप में संस्थागत और प्रोत्साहित करना है।
⚖️ मध्यस्थता की मुख्य विशेषताएँ
- स्वैच्छिक: दोनों पक्ष भाग लेने के लिए स्वयं निर्णय लेते हैं और किसी भी समय प्रक्रिया से बाहर हो सकते हैं।
- तटस्थ मध्यस्थ: मध्यस्थ निष्पक्ष रहता है और किसी पक्ष का समर्थन नहीं करता।
- गोपनीय: मध्यस्थता के दौरान चर्चा निजी रहती है और इसे न्यायालय या किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं किया जाता।
- सहमतिपूर्ण निर्णय: परिणाम दोनों पक्षों की सहमति पर आधारित होता है।
- गैर विरोधात्मक: मध्यस्थता सहयोग को बढ़ावा देती है, टकराव को नहीं।
🧾 ऐसे मामले जिनके लिए मध्यस्थता उपयुक्त है
- परिवार और वैवाहिक विवाद (तलाक, हिरासत, भरण-पोषण आदि),
- व्यापार और वाणिज्यिक विवाद,
- मकान-मालिक और किरायेदार से संबंधित मुद्दे,
- उपभोक्ता शिकायतें,
- रोजगार और कार्यस्थल संबंधी विवाद,
- पड़ोस और सामुदायिक विवाद,
- संपत्ति और विरासत संबंधी मामले।
🌟 मध्यस्थता के लाभ
- तेज़ समाधान: विवाद अक्सर कुछ ही सत्रों में हल हो जाते हैं।
- लागत-कुशल: मुकदमेबाजी या मध्यस्थता की तुलना में सस्ता।
- संबंधों की सुरक्षा: विशेषकर परिवार और व्यापारिक मामलों में सद्भाव बनाए रखने में मदद करता है।
- लचीला और अनौपचारिक: कठोर प्रक्रियाएँ नहीं; परिणाम पर पक्षों का नियंत्रण।
- न्यायालय पर बोझ कम करता है: मामूली और सिविल विवादों को पहले से व्यस्त न्यायालयों से हटाता है।
📞 मध्यस्थता आज़माना चाहते हैं?
यदि आप किसी विवाद में शामिल हैं और शांतिपूर्ण, समयबद्ध और सहयोगी समाधान चाहते हैं, तो अपने निकटतम मध्यस्थता केंद्र या विधिक सेवा प्राधिकरण से संपर्क करें।